( PHYSICALLY EXCEPTIONAL CHILDREN )
लम्बी बीमारी , जन्म से पूर्व माँ को संक्रामक रोग होना , जन्म के समय अथवा बाद में कोई संक्रमण , संवेदी अगों में कोई दोष इत्यादि कारणों से कुछ बालक शारीरिक रूप से दूसरे सामान्य बालकों से भिन्न हो जाते हैं । स्पष्ट है यह विभिन्नता केवल ऋणात्मक होती है अर्थात शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक . सामान्य बालकों से शारीरिक क्षमताओं में निम्न स्तर के होते हैं ।
ये शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक निम्न प्रकार के हो सकते है
1. दृष्टि विकलांग बालक
2. वाणी विकलांग बालक
3. श्रवण विकलांग बालक
4.अस्थि विकलांग बालक
5. बहुल विकलांग बालक
इन बालकों की मानसिक क्षमता सामान्य होती है परन्तु इनकी शारीरिक विशिष्टता इनके सीखने में बाधा पहुँचाती है । अतः ये बालक प्रायः शैक्षिक रूप पिछड़े हुए होते हैं ।
1 . आवागमन की समस्या ( Problem of Transportation ) -- शारीरिक रूप से विकलाग बालकों ( विशेषकर नेत्रहीन एवं अस्थि विकलांग ) के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना अत्यन्त दूष्कर है । अतः इनका जीवन एक स्थान पर ही सीमित रह जाता है । इनके अनुभवों की संख्या भी कम होती है ।
2. सम्प्रेषण की समस्या ( Problem of Communication ) — वाणी दोष एवं श्रवण दोष वाले विशिष्ट बालकों के समक्ष भाषा की समस्या होती है । ये स्वयं को बोलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते अतः दूसरे बालकों के साथ इनकी अन्तक्रियायें सीमित होती हैं ।
3. कक्षा गतिविधियों में सीमित सहभागिता ( Limited Participation in Classroom Activities ) -अपनी शारीरिक विकलांगता के कारण ये कक्षा में होने वाली अनेक पाठ्यसहगामी क्रियाओं में भाग नहीं ले पाते ।
4. समायोजन की समस्या ( Problem of Adjustment ) शारीरिक विकलांग बालकों की सामाजिक क्रियायें अत्यन्त सीमित होती हैं अतः ये किसी भी सामाजिक समूह में भली - भाँति समायोजित नहीं हो पाते ।
5. सीखने की धीमी गति ( Low speed of Learning ) – किसी एक अथवा कई संवेदी अगों में दोष के कारण ये बालक किसी भी वस्तु का सम्पूर्ण प्रत्यय नहीं सीख पाते , अतः इनका सीखना अधूरा तथा गति धीमी होती है ।
6. मनोवैज्ञानिक समस्यायें ( Psychological Problems ) अपनी अक्षमता के कारण प्रायः इन बालकों में हीन भावना , भग्नाशा इत्यादि दिखाई पड़ती है ।
शारीरिक रूप से विशिष्ट बालक अपने जीवन को सार्थक रूप से जी सकें , इसके लिए इन्हें निम्नलिखित सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए
1. विशिष्ट विद्यालय ( Special School ) नेत्रहीन , मूक एवं श्रवण दोष युक्त बालकों के लिए यदि विशेष विद्यालय हों तो उपयुक्त होगा ।
2. विशेष उपकरण ( Special Equipments ) शारीरिक विकलांगों के लिए अब ऐसे अनेक उपकरण उपलब्ध हैं , जो उनकी अक्षमता को कम करते हैं । जैसे श्रवण यंत्र ( Hearing nid ) , नेत्रहीनों के लिए बाधा खोजी यंत्र ( Obstacle detector ) , अस्थि विकलांगों के लिए कृत्रिम अंग ( Artificial Limbs ) आदि ।
3. दृश्य - श्रव्य साधन ( Audio - visual Material ) जिस बालक में जो सवेदी अंग दोषपूर्ण है , उसके अतिरिक्त अन्य अंगों का अधिकतम उपयोग सीखने में कर सके , इसके लिए दृश्य - अव्य साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए । उदाहरण के लिए , नेत्रहीन बालकों के लिए अधिकतम अव्य साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
4. विशेष शिक्षण विधियाँ ( Special Methods of Teaching ) इन बालकों को शिक्षित करने के लिए विशेष शिक्षण विधियाँ अधिक उपयोगी होगी । जैसे योजना विधि , करके सीखना , भ्रमण इत्यादि ।
5. प्रशिक्षित अध्यापक ( Trained Teachers )- इन बालकों को शिक्षित करने के लिए विशेष प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है , जो विशेष शिक्षण विधियों में प्रशिक्षित हो साथ ही उन्हें इन बालकों की समस्याओं का ज्ञान हो ।
6. हस्तकलाओं की शिक्षा ( Craft Education )- इन बालकों को ऐसी हस्तकलायें सिखाई जाएँ जिसे ये भविष्य में व्यवसाय के रूप में अपना सकें ।
7. समाज द्वारा स्वीकृत ( Social Acceptance ) अपनी अपंगता के कारण प्रायः ये बच्चे अपने साथियों में स्वीकृत नहीं होते । कई बार इनमें कुछ आदतें विकसित हो जाती हैं , जो दूसरे पसन्द नहीं करते हैं । इन बालकों को इस प्रकार की शिक्षा देने की आवश्यकता होती है ।
इसके अन्तर्गत सामाजिक रूप से कुसमायोजित बालक आते हैं । सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक सामाजिक परम्पराओं , विचारों , मान्यताओं तथा मूल्यों के प्रति घृणा एवं विद्रोह का भाव रखते है समाज को हानि पहुंचाने में इन्हें संतोष का अनुभव होता है । कई बार कुछ बालक समाज के दलित , पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं । ये बालक भी सामाजिक व्यवस्था से संतुष्ट न होने के कारण समाज के प्रति विद्रोह का भाव रखते हैं ।
सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक निम्नलिखित हैं 👇👇
1. बाल अपराधी
2. समस्यात्मक बालक
3. वचित बालक ।
1. समायोजन की समस्या ( Problem of Adjustment ) सामाजिक रूप से विशिष्ट बालकों की मूल समस्या यही होती है कि वे सामाजिक रूप से समायोजित नहीं हो पाते हैं । सामाजिक अन्तक्रियाओं के अनुभव अधिक सुखद नहीं होते , अतः वे असामाजिक हो जाते हैं ।
2. संवेगात्मक अस्थिरता ( Emotional Instability ) सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक प्रायः अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं ।
3. पूर्वाग्रह ( Prejudices ) इन बालकों में पूर्वाग्रह की अधिकता पायी जाती है । ये पूर्वाग्रह किसी धर्म , जाति , वर्ग या आर्थिक समूह के प्रति हो सकते हैं ।
4. नकारात्मक दृष्टिकोण ( Negative Attitude ) इन बालकों में जीवन के सभी पक्षों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण होता है । अतः जीवन के किसी भी समस्या का स्वस्थ , सार्थक हल ढूँढ़ने के बजाए ये निराशावादी दृष्टिकोण अपना लेते हैं । 5. झगड़ालू प्रवृत्ति ( Pugnative Tendencies ) - इन बालकों में प्रायः झगड़ालू प्रवृत्ति . उग्र स्वभाव तथा ऐसी ही असामाजिक प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं । प्रायः ये शक्की तथा अधीर स्वभाव के होते है ।
6. भावना ग्रन्थियाँ ( Complexes ) कई बार कुछ बालक हीन भावना से ग्रसित होक दूसरे व्यक्तियों अथवा समाज के प्रति घृणा , विद्रोह एवं विद्वेष का भाव रखते हैं ।
1. व्यक्तिगत ध्यान ( Individunt Attention ) सामाजिक रूप से विशिष्ट बालक की विशिष्टता के भिन्न - भिन्न कारण होते है । उनके उपचार के लिए उन कारणों को पहचानना आवश्यक है । अतः इन बालकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना आवश्यक है ।
2. मनोचिकित्सक ( Psychotherapist ) इन बालकों में छिपी भावना ग्रन्थियों को एक मनोचिकित्सक ही पहचान सकता है तथा उन्हें दूर कर सकता है ।
3. वातावरण में सुधार ( Improvement in Environment ) बालक जन्म से अपराधी या समस्यात्मक नहीं होता , उसके वातावरण में कमी अथवा दोष ही इसके लिए उत्तरदायी होते हैं । इन कमियों अथवा दोषों को दूर करके एक स्वस्थ वातावरण इन बालकों को प्रदान करके इन्हें सामान्य बनाया जा सकता है ।
4. पुरस्कारों का प्रयोग ( Use of Rewards ) बालक अपराधियों को अथवा समस्यात्मक बालकों को सुधारने के लिए दण्ड का प्रयोग उतना प्रभावी नहीं होता जितना पुरस्कार । अतः बालक के प्रत्येक अच्छे व्यवहार को तुरन्त पुरस्कृत किया जाना चाहिए ।
5. अच्छी रुचियों का विकास ( Development of Good Habits ) कई बार बुरा साहित्य , बुरी संगत , अश्लील फिल्में इत्यादि बालक में अपवादिता का कारण होती हैं । बालकों को ऐसा वातावरण प्रदान करना चाहिए कि उनमें साहित्यिक एवं परिष्कृत रुचियों का विकास हो ।
6. सुधारगृह ( Reformation ) बाल अपराधी बालकों के लिए विशेष सुधारगृह हो जहाँ पर उन्हें रखकर उनके व्यवहार को रूपान्तरित किया जाए । इन सुधारगृहों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था हो ।
अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा के लिए दो उपागम का प्रयोग किया जाता है ..
* कौशल प्रशिक्षण उपागम → यह उपागम बालक के विशिष्ट कौशलों के विषय में सीधे मापन पर आधारित है । *योग्यता प्रशिक्षण उपागम - ऐसे उपागम का प्रयोग बालक की आधारभूत योग्यताओं में व्याप्त अक्षमताओं में सुधार के लिए निर्देशात्मक प्रक्रियाओं निर्माण पर मुख्य रूप से किया जाता है ।
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