बाल विकास के सिद्धांत Bal Vikas ke Pramukh Siddhant

प्रिय पाठकों,

बाल विकास एवं सीटेट के लिए अध्ययन शास्त्र के अध्ससन सामग्री को पढ़े। अध्ययन सामग्री संज्ञानात्मक सिद्धांत एवं नैतिक विकास के प्रसंग पर आधारित है। 

संज्ञानात्मक विकास पर पियागेट का सिद्धांत

जीन पियागेट, बच्चे के मनोवैज्ञानिक, ने इस बात पर जोर दिया कि छात्र अपने वातावरण को कैसे प्रभावित करते हैं एवं जटिल तर्क एवं ज्ञान कैसे विकसित करते हैं। यहाँ प्रयुक्त महत्वपूर्ण पद हैः आत्मसा, आवास, एवं संतुलन। इसके आलावा, किसी व्यक्ति की अनुभूति एवं अवलोकन के आधार पर उन्होने साांनात्मकन किया। चरण हैं- संवेदी मोटर चरण, पूर्व परिचालन चरण, मूर्त संचालन चरण एवं औपचाारिक संचालन।। 

विभिन्न चरण एवं उसके लक्षण

👉संवेदी मोटर(जन्म से 2 वर्ष बाद तक):- यह शिशुओं एवं बचचों के अनियंत्रित शारीरिक प्रतिक्रिया या द्वारा परिलक्षत होती है। इस समय अपने साांनात्मक कौशल विकसित करने या अपनी दुनिया बनाने के लिए वे अपने शारीरिक या मोटर कौशल का स्वयं उपसोग करते हें।

👉पूर्व परिचालन(2-7 वर्ष तक):- यह आमतौर पर 2-3 वर्ष से लेकर लगभग 7 वर्ष आयु तक होते है। आंशिक रूप से तार्किक सोच इन्हीं वर्षों के दौरान शुरू होती हे। पूर्व परिचालनीय सोच प्रायः अताकिर्क हो सकता हे। उदाहरण के लिए, जॉन ने, अपनी अनुभूती क आधार पर, सोचा कि लंबे पतले गिलास में छोटे, पौड़े गिलास में अपेक्षाकृत अधिक रस होता हे। पियागेट के अनुसार, वे तार्किक विचारक होते हे एवं उसने इसे ‘आत्मकेनिद्रत चरण ’ कहा।

👉यथार्थपूर्ण संचालन(7-12 वर्ष तक)

अपने बचपन के इस मध्य चरण में, बच्चे अधिक तार्किक रूप से सोचना सीखते हैं एवं उन्हें प्रदर्शन के लिए ठोस वस्तुओं की जरूरत होती है तथा अपने निष्कर्ष तक पहुँचते हैं। इस प्रकार, इस अवस्था में हम देखते हैं कि गचचे अपने गणित का सवाल हल करने के लिए अपनी अंगुलियों या ब्लॉक का उपयोग करते हैं।

👉औपचारिक संचालन(12 से अधिक वर्ष) :-यह अंतिम चरण हमारे शेष जीवन को शामिल करता है। पियागेट का मनना हे कि इस अवस्था तक पहँचने के बद हर कोई ताक्रिक रूप से के योग्य हो जाते हैं तथा अपने मन में सवाल का हल निकाल सकते हें। इस अवधि के दौरन, बच्चे अमूर्त सोच के अधिक सोग्य होते हें तथा अधिक जिअल मुद्दों को हल ढुँढ सकते हैं।

नैतिक विकास के कोलबर्ग के दृष्टिकोण

लॉरेंस कॉलबर्ग मुख्यतः रूचि ले रहे थे कि बचचे नैतिक निर्णय लेने में अपनी क्षमता कैसे विकसित करते हैं। उसने मूलतः दह चरणों को सिद्धांत बद्ध किया जब लोग अपने नैतिक में तीन स्तरों (6 चरण वाले) से प्रगति करते हैं।

१-पूर्व- यकन्वेंशनल लेवल - उनकी नैतिक की जाँच हे। पारंपरिक स्तर एवं आज्ञाकारिता की स्थिति का निर्धारणः इस स्थिति में लोगों को दंउ से बचने के लिए प्रोत्साहन किया है, यदि उन्हें दंड मिलता है तो उनका कार्य बुरा होता है तथ यदि उन्हें दण्ड नहीं मिलता है तो वह अच्छा है।

व्यक्तिवाद या स्वार्थ :- लोग आमतौर पर स्वार्थ से प्रेरित है। हालांकि निष्पक्षता के तत्व बदलते रहते हैं किन्तु वे अधिकांशतः इस बात में रूचि लेते हें कि ‘‘यदि आप मुझे नुकसान पहुँचाओगे, तो में भी आपको नुकसान पहुँचाऊँगा

२-पारंपरिक स्तरः इसमें दो स्तर होते हैं तथा किशोरावस्था मुख्यतः इसी स्तर में आती हें लड़के-अच्छी लड़की की अवधारणा इसका अर्थ है अपना कर्त्तव्य उचित रूप से निभाना जो अधिकार के प्रति आस्था प्रदर्शित करता है। और व्यवस्था का कानूननिर्धारणःइसका अर्थ है अपना कर्त्तव्य उचित रूप से निभाना जो अधिकार के प्रति आस्था प्रदर्शित करता है।

३-परंपरागत नैतिकताः लोग अपने मूल्यों को नैतिक मूल्यों के सापेक्ष परिभाषित करते हैं। पोस्ट नियम एवं समझौता समाज का नियम इसके कल्याण के लिए बदला जा सकता है तथा वे स्थायी नहीं होते हैं। नैतिक सिद्धांत संक्षेप में, लोग दूसरों के हितों को समझने की कोशिश करते हैं जब वे नैतिक निर्णय लेते है, इसके बावजूद वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के तरीेके तलाशते हैं।

कोलबर्ग सिद्धांत की सीमाएँः

यह मुख्यतः वास्तविक व्यवहार के गजाय तर्क पर केन्द्रित है।यह दर्शाता है कि बच्चों का नैतिक वयवहार एवं तर्क काफी कमजोर हो सकता है।टधिकांश दार्शनिकों का विश्वास है कि मूल्य को व्यक्ति की सोच का भाग होना चाहिए जिससे कि उसके कार्य उसकी सोच के साथ में सद्भाव बना सके।

समीपस्थ विकास का लेव व्यागोत्स्की का क्षेत्र उनका सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत दोनों संज्ञानात्मक एवं सामाजिक विकास को जोड़ता है। यहाँ हम यह चर्चा करेंगे कि सामाजिक पारस्परिक-क्रिया बच्चों क साांनात्मक विकास, एवं भाषण एवं भाषा, की सिथति का वर्णन करने में कैसी भूमिका निभाते हैं।

१- मचानः उसने देखा बच्चे समाज के पारस्परिक-क्रिया में संवाद करते हुए सीखते हें। उन्होंने उनके संज्ञानत्मक विकास के लिए भाषा विकास के महत्व पर जोर दिया।

२- सांस्कृतिक पहलुः वयस्क बच्चों को दोनों अनौपचारिक तथा औपचारिक संवाद एवं शिक्षा के माध्यम से बतलाते हैं कि संस्कृति दुनिया की व्याख्या तथा जवाब किस प्रकार देता है। जब वयस्क बचचाें से परस्पर बातचीत करते हैं तो वे एन अर्थों को दर्शाता हैं जो वस्तुओं, घटनाओं एवं अनुभवों से जुड़े हैं। 

३- भाषण एवं भाषा का विकास:- यह व्यागोत्स्की के सिद्धांत की मुख्य अवधारणा है कि सेच एवं भाषायें तेजी से स्वतंत्र होती जा रही है एवं जीवन के प्रारंभिक कुछ वर्षें में महत्वपूर्ण है। व्यागोत्स्की ने पाया कि व्यस्क ‘मचान’ के माध्यम से बच्चे के व्यवहर को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभते हैं। इसलिए, उन्होंने बच्चे के संज्ञानात्मक व्यवहार एवं विकास के लिए शिक्षण एवं अध्ययन में भाषा के विकास के महत्व पर जोर दिया।ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करें ताकि लोग इस का लाभ उठा सकें ।।। 

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