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हजारी प्रसाद द्विवेदी

मूल नाम : --------- बैजनाथ द्विवेदी 

जन्म: -- 19 अगस्त1907 दुबे-का-छपरा ग्राम 

जिला बलिया (उत्तर प्रदेश)

मृत्यु:: --------- 1979


हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएँ - : ---------

सूर साहित्य (1936)

हिन्दी साहित्य की भूमिका(1940)

प्राचीन भारत में कलात्मक विनोद(1940) 

कबीर (1942)

नाथ संप्रदाय (1950) 

हिन्दी साहित्य का आदिकाल(1952) 

आधुनिक हिन्दी साहित्य पर विचार (1949) 

साहित्य का मर्म (1949) 

मेघदूत: एक पुरानी कहानी (1957) 

लालित्य मीमांसा (1962) 

साहित्य सहचर (1965) 

कालिदास की लालित्य योजना(1967) 

मध्यकालीन बोध का स्वरूप (1970) 



हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध- : --------- 

आलोक पर्व (1971)

अशोक के फूल (1948) 

कल्पलता (1951)

विचार और वितर्क (1954) 

विचार प्रवाह (1959)

कुटज (1964) 

आलोक पर्व (1972) 


हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास------

बाणभट्ट की आत्मकथा (1947)

चारु चंद्रलेख(1963) पुनर्नवा(1973)

अनामदास का पोथा (1976) 

वृत्ति- 1930 से 1950 तक शांतिनिकेतन के हिंदी-भवन में अध्यक्ष, 1950 से 1960 तक हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष। इसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ में अध्यक्ष एवं प्रोफ़ेसर (1960-67) 


हजारी प्रसाद द्विवेदी को प्राप्त उपाधि/ सम्मान-------- 

1• 1949 में लखनऊ वि. वि. से डी. लिट की उपाधि से सम्मानित। 

2• राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित (1957 में) 

3• पश्चिम बंगाल साहित्य अकादमी से टैगोर पुरस्कार द्वारा सम्मानित(1966) 

4•केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत (1973)।


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने तीन इतिहास ग्रन्थो की रचना क्रमश : ---

1. हिन्दी साहित्य की भूमिका1940

2. हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास 1952 

3. हिन्दी साहित्य का आदिकाल 1952


द्विवेदी ने अपने इतिहास मे परम्परा की निरन्तरता का अनुशीलन करते हुए एक व्यापक इतिहास - दर्शन की भूमिका तैयार की | 



हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है " कि शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष मे दुसरा नही हुआ | भारतवर्ष मे कोने - कोने मे उनके अनुयायी आज भी पाये जाते है | भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था | गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे " 


द्विवेदी ने रासो' शब्द की व्युत्पति 'रासक'(उपरूपक) से मानी । 


द्विवेदी ने ' पृथ्वीराज रासो' को शुक-शकी संवाद के रूप मे रचित माना है । 


द्विवेदी ने विद्यापति को' शृंगार रस के सिद्ध वाक् कवि ' कहा है । 


द्विवेदी जी ने भक्ति आन्दोलन को ' लोकजागरण' की संज्ञा दी | 


द्विवेदी जी ने अपभ्रंश को हिन्दी से पृथक मानते थे 

आदिकाल को " अत्यधिक विरोधी और व्याघातो का युग " कहा है 

द्विवेदी ने अब्दूल रहमान को हिन्दी का पहला कवि माना है 


द्विवेदी ने कबीर को 'भाषा का डिक्टेटर' कहा है व रामानन्द को 'आकाश धर्मा गुरु' कहा | 

'मध्य युग की समग्र स्वाधीन चिन्ता के गुरु रामानन्द ही थे 


द्विवेदी ने तुलसीदास के बारे मे " भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर आया है |"