शिक्षण विधियाँ और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
परिचय:
शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें केवल जानकारी देना ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के मानसिक विकास को भी दिशा देना होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें यह समझने में मदद करता है कि कौन-सी शिक्षण विधियाँ विद्यार्थियों की रुचि, क्षमता और आवश्यकता के अनुसार सबसे उपयुक्त हैं।
1. व्यावहारिक शिक्षण विधि (Activity-Based Learning)
यह विधि जॉन ड्यूई के अनुभववादी सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें "करके सीखना" (learning by doing) पर ज़ोर होता है। बच्चे किसी गतिविधि में भाग लेते हैं और अनुभव के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: बच्चे का मन जिज्ञासु होता है। जब वह स्वयं कोई कार्य करता है, तो उसमें रूचि लेकर सीखता है और ज्ञान स्थायी हो जाता है।
2. संवादात्मक विधि (Interactive/Discussion Method)
इस विधि में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच प्रश्नोत्तर, चर्चा और विचार-विमर्श होता है। यह विधि सॉक्रेटिक मेथड से प्रेरित है, जिसमें विद्यार्थियों की सोचने की क्षमता विकसित होती है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: यह विधि संज्ञानात्मक विकास को प्रोत्साहित करती है, क्योंकि बच्चा जब सवालों पर विचार करता है, तो उसकी तार्किक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
3. दृश्य-श्रव्य विधि (Audio-Visual Method)
इसमें चित्र, वीडियो, प्रोजेक्टर, एनिमेशन आदि का प्रयोग होता है जिससे सीखना रोचक और प्रभावशाली बन जाता है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: मल्टीसेन्सरी लर्निंग सिद्धांत के अनुसार जब एक से अधिक इंद्रियाँ (देखना, सुनना) एक साथ सक्रिय होती हैं, तो सीखना तेज और दीर्घकालिक होता है।
निष्कर्ष:
शिक्षण विधियाँ तभी सफल होती हैं जब वे बच्चों की मानसिक अवस्था और रुचि को ध्यान में रखकर चुनी जाएँ। एक अच्छा शिक्षक वही है जो मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हुए उपयुक्त शिक्षण विधि का चयन करे।
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