परिवार (Family)
परिवार मानव समाज की प्राचीनतम एवं आधारभूत इकाई है जिसमें पति-पत्नी एवं उनके बच्चे तथा बच्चों के बच्चे सम्मिलित रूप से रहते हैं इसमें विवाह और दत्तक प्रथा (गोद लेने) द्वारा परिवार की स्वीकृति प्राप्त व्यक्ति भी सम्मिलित होते हैं। मानव समाज में परिवार एक बुनियादी तथा सार्वभौमिक इकाई है। यह सामाजिक जीवन की निरंतरता, एकता एवं विकास के लिए आवश्यक प्रकार्य करता है। अधिकांश पारंपरिक समाजों में परिवार सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिकगतिविधियों एवं संगठनों की इकाई रही है। आधुनिक समाज में परिवार प्राथमिक रूप से संतानोंत्पत्ति, सामाजीकरण एवं भावनात्मक संतोष की व्यवस्था से संबंधित प्रकार्य करता है।
परिवार की विशेषताएं
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और व्यक्ति के सामाजिक जीवन में सबसे बड़ी भूमिका परिवार की होती है . व्यक्ति का जन्म प्राकृतिक प्राणी के रूप में परिवार मे होता है.परिवार सामाजिक व्यवस्था का लघुरूप, तथा ज्ञान की प्रथम पाठशाला है. समाज का लघुरूप परिवार है, जहाँ मनुष्य ने सामूहिक रूप से रहना सीखा. सामाजिक संगठनों में परिवार सबसे प्रमुख है.परिवार से ही व्यक्ति की शिक्षा प्रारम्भ होती है. मानवीय गुणों जेसे– त्याग, प्रेम, सहयोग, भाईचारा, सेवा भावना, अनुशासन आज्ञापालन, कर्तव्यपालन आदि की शिक्षा परिवार से ही प्राप्त होती है.बालक परिवार से ही सत्य–असत्य, न्याय-अन्याय, अपना-पराया, उदारता-अनुदारता, आलस्य परिश्रम, अच्छा-बुरा आदि में फर्क करने की शिक्षा प्राप्त करता है.परिवार ही व्यक्ति के सामजिक जीवन का आधार है. अतः परिवार को अनोपचारिक शिक्षा का प्रभावशाली एवं प्रमुख साधन माना गया है.
परिवार का वर्गीकरण
परिवार को आकार की दृष्टि से दो भागो में विभक्त किया गया है
संयुक्त परिवार एकल परिवार
संयुक्त परिवार – भारतीय सामाजिक जीवन का मुख्य आधार संयुक्त परिवार ही है| संयुक्त परिवार में दो-तीन पीढ़ीयों के सदस्य शामिल रहते हैं और ये एक-दूसरे से संपत्ति, आय तथा पारस्परिक अधिकारों एवं कर्तव्यों से जुड़े रहते हैं| संयुक्त परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, पुत्रवधू एवं उनके बच्चे, चाचा-चाची, दादा-दादी आदि एक साथ एक ही घर में रहते है.
विशेषताएं:-
अतः संयुक्त परिवार का आकार बड़ा होता है|सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति असीमित उत्तरदायित्व होता है|सर्वाधिक आयु वाला व्यक्ति परिवार का मुखिया होता हैसंयुक्त परिवारों में प्यार का दायरा बड़ा होता है।बच्चों को सभी का लाड-प्यार मिलता है। ज़ाहिर है कि उनका मानसिक विकास ज़्यादा होगा।परिवार में बड़े-बुजुर्ग होने की वजह से बच्चों में संस्कार जल्दी आ जाते हैं।प्यार और सम्मान बच्चों को यहां बचपन से मिल जाते हैं और मुखिया ही प्रत्येक सदस्य के लिए आवश्यकतानुसार धन का व्यय सम्मिलित रूप से करता है|
एकल परिवार: संयुक्त परिवार की एक लघु इकाई ही एकल परिवार है | संयुक्त परिवार का विभिन्न प्रकार की समस्याओं के कारण विघटन होने पर एकल परिवार का निर्माण होता है| वर्त्तमान में बढती महंगाई और जनसँख्या के कारण एकल परिवारों में तीव्रता से वृद्धि हुई है | एकल परिवार में पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे होते है |
परिवार का आधुनिक स्वरूप
भारत में संयुक्त परिवार ही आदर्श परिवार माना जाता है ,परन्तु सुख-सुविधा की उपलब्धता, ओद्योगीकरण, एवं शहरीकरण के कारण भारतीय परिवार पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ता जा रहा है| आज का शिक्षित समाज प्राचीन रूढियो, परम्पराओ एवं अन्धविश्वासों से ऊपर उठ कर जीवन जीना पसंद रहा है, फलतः सयुक्त परिवार में विघटन की प्रवृति बढ़ रही है| परिस्थितियों के प्रभावस्वरूप भी परिवार का स्वरुप बदलने लगा है | आज के नवयुवक एवं नवयुवतियां विवाह पूर्व ही स्वतंत्र व नियंत्रण मुक्त जीवन की कल्पना करने लगते है. उन्हें किसी तरह का बंधन स्वीकार नही है| संबंधो के मायने बदल रहे है. परिवार की मर्यादा टूट रही है, इस प्रकार संयुक्त परिवार पाश्चात्य प्रकार के एकल परिवार का आधुनिक स्वरुप ले रहा है|
परिवार का महत्व
मानव की जीवन यात्रा का शुभारम्भ परिवार से ही होता है तथा प्रारम्भिक एवं मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती परिवार में ही होती है| परिवार में बालक के व्यक्तित्व एवं चरित्र की नीव पड़ती है| परिवार के महत्व को सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से स्पस्ष्ट किया जा सकता हैपरिवार में ही रहकर व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप पशु-स्तर से मानव स्तर में प्रवेश करता है|परिवार में ही रहकर व्यक्ति समाज के तौर-तरीके, मान्यताओं, आदर्शो, परंपराओं, सामाजिक मूल्यों एवं उत्तरदायित्व का ज्ञान प्राप्त करता है|आर्थिक दृष्टि से भी परिवार का महत्व कम नहीं है| मनुष्य की समस्त आर्थिक क्रियाओं का संचालन परिवार में ही होता है.प्रारंभ में आर्थिक रूप से व्यक्ति को परिवार पर ही निर्भर रहना पड़ता है, परन्तु धीरे-धीरे परिवार के प्रयत्नों, साधनों एवं सहयोग द्वारा वह आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनता है.परिवार को एक शिक्षण संस्थान के रूप में स्वीकार किया जाता है| परिवार समाज का लघुरूप एवं बालक की प्रथम पाठशाला है और माँ उसकी प्रथम आदर्श शिक्षिका है|परिवार ही वह स्थान है जहाँ बालक को सभी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त होती है|परिवार में ही उसके शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सांस्कृतिक एवं नैतिक विकास की रूपरेखा तयार होती है और उसके भावी जीवन की नीव है |
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