पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
पियाजे का सिद्धान्त The Theory of Piaget
पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की संकल्पनाएं
1. संवेदी-पेशीय अवस्था (सेसंरी मोटर स्टेज)
यह अवस्था बालक में जन्म से लेकर दो वर्ष तक की अवधि में होती है। इस अवस्था में बालक अपनी इंद्रियों के अनुभवों और उन पर पेशीय कार्य करके समझ विकसित करते हैं, जैसे देखकर छूना, पैर मारना आदि। इसे संवेदी पेशीय अवस्था कहते हैं। शुरूआत में बालक प्रतिवर्ती क्रियाएं करता है, जैसे कि चूसना और धीरे-धीरे संवेदी पेशीय कार्य पैटर्न दिखाता है, जैसे बर-बार गिराना, जिनके गिरने की आवाज़ उसे रोचक लगे।
इस अवस्था में सबसे बड़ी उपलब्धि बालक द्वारा वस्तु स्थायित्व (Object Permanence) का संज्ञान होना है। इसके द्वारा बालक यह जान पाता है कि घटनाएं एवं वस्तुएं तब भी उपस्थित रहती हैं जब वे हमारे सामने (देखी, सुनी या महसूस) नहीं होती हैं। साथ ही बालक स्वयं व विश्व में (कि दोनों अलग अस्तित्व रखते हैं) अंतर स्पष्ट कर पाने की स्थिति कर पाने की स्थिति में आ जाता है।
2. प्राकसंप्रत्यात्मक अवस्था
पियाजे के अनुसार, दूसरी अवस्था लगभग 2 से 7 वर्ष तक होती है। इस अवस्था को पुन: दो भागों में बांटा जा सकता है।
प्राकसंप्रत्यात्मकअंतर्दर्शी अवधि
प्राकसंप्रत्यात्मक : यह अवधि 2 से 4 वर्ष तक की होती है। इस अवधि में बालक वस्तु सामने न होने पर भी उसकी मानसिक छवि बना लेता है। बालक बाह्य जगत की विभिन्न वस्तुओं एवं व्यक्तियों की मानसिक उपस्थिति के लिए विभिन्न संकेतों का विकास कर लेता है।
भाषा का विस्तृत प्रयोग तथा आभासी क्रियाएं बच्चों में सांकेतिक विचारों के विकास को दिखाती है, जैसे लकड़ी को ट्रक समझकर चलाते हुए खेलना। इसके अलावा बच्चों के द्वारा की गई ड्राइंग में भी उनके द्वारा प्रयोग किए गए संकेतों को देखा जा सकता है।
अंतर्दर्शी अवधि : यह अवधि लगभग 4 से 7 साल की होती है। इस अवधि में बच्चों में प्रारंभिक तर्कशक्ति आ जाती है और इससे संबंधित विभिन्न प्रश्नों को जानना चाहता है। पियाजे ने इसे अंतर्दर्शी अवधि इसलिए कहा है कि क्योंकि बच्चा इस अवधि में अपने ज्ञान व समझ के बारे में पूर्णतया जानते हैं। उदाहरण के लिए वे गणितीय घटाना व गुणा कर पाते हैं, लेकिन कहां प्रयोग करना है और क्यों प्रयोग करना है इसे नहीं समझ पाते हैं।
3. मूर्त संक्रियात्मक की अवस्था
पियाजे के सिद्धांत के अनुसार, ज्ञानात्मक विकास की तरह यह तीसरी अवस्था लगभग 7 साल से प्रारंभ होकर 12 साल तक चलती है। हालांकि इस अवस्था में बच्चों के विचारों में संक्रियात्मक क्षमता आ जाती है और अंतर्दर्शी तर्कशक्ति की जगह तार्किकता (Logical Reasoning) आ जाती है। परन्तु बालक समस्या समाधान हेतू मूर्त परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है। उदाहरण के लिए दो ठोस वस्तुओं से संबंधित समस्या के लिए बालक आसानी से मानसिक संक्रिया कर लेता है लेकिन यदि उन वस्तुओं को न देकर उनके बारे में शाब्दिक कथन दिए जाएं तो ऐसी समस्याएं अमूर्त होने के कारण वे इसे हल नहीं कर पाएंगे।
4. औपचारिक संक्रिया की व्यवस्था
पियाजे के अनुसार यह भी चौथी अवस्था है जो लगभग 11 वर्ष से आरंभ होती है और वयस्कावस्था तक चलती है। इस अवस्था में बालक का चिंतन अधिक अमूर्त, अधिक क्रमबद्ध, लचीला और तार्किक हो जाता है। औपचारिक संक्रिया अवस्था में चिंतन की अमूर्त गुणवत्ता, मौखिक कथनों की समस्या हल करने की क्षमता में देखी जा सकती है।
उदाहरण के लिए यह तार्किक उत्तर कि अगर A=B और A=C को उनके सामने कथन स्वरूप में रखा जाए तो वे आसानी से निष्कर्ष तक पहुंच जाते हैं। पियाजे के अनुसार, इस अवस्था में बच्चे वैज्ञानिकों की तरह तार्किक सोच रखते हैं।⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️⬆️
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