लॉरेंस कोहलबर्ग का सिद्धांत Lawrance Kohlberg's Theory 
लॉरेंस कोहलबर्ग ने 10 से 16 वर्ष के बच्चों से प्राप्त तथ्यों का विश्लेषण करके सिद्धांत प्रतिपादित किया । कोहलबर्ग के अनुसार जब बालकों को नैतिक संघर्षों का सामना करना पड़ता है तो उनकी तार्किकता अधिक महत्त्वपूर्ण होती है न कि अन्तिम निर्णय कोहलवर्ग ने धारणा बनायी की बालक अपनी विकास की अवस्था में तीन स्तरों से गुजरकर अपनी नैतिक तार्किकता की योग्यताओं को विकसित कर पाते हैं । जो निम्नलिखित है 
( a ) प्राकरूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( Level of Preconventional Level ) : यह अवस्था 4 वर्ष से लेकर 10 वर्ष की आयु तक होती है । इस अवस्था में नैतिक तर्कणा ( Moral Reasoning ) दूसरे लोगों के मानकों ( Standards ) से निर्धारित होता है , न कि सही तथा गलत के अपने आंतरीकृत मानकों ( Internalized Standards ) के द्वारा । बच्चे यहाँ किसी भी व्यवहार को अच्छा या बुरा , उसके भौतिक परिणामों के आधार पर कहते हैं । इसके अंतर्गत दो अवस्थाएँ होती हैं— 
( i ) दंड एवं आज्ञाकारिता उन्मुखता ( Punishment and Obedience Orientation ) : इस अवस्था के बच्चों में दंड से दूर रहने का अभिप्रेरण अधिक मजबूत होता है । इस अवस्था में बच्चे प्रतिष्ठित या शक्तिशाली व्यक्ति , प्रायः माता - पिता के प्रति सम्मान दिखलाता है ताकि उसे दंड नहीं मिल सके । किसी भी कार्य या व्यवहार की नैतिकता को यहाँ व्यक्ति उसके भौतिक परिणामों के रूप में परिभाषित करता है । 
( ii ) साधनात्मक सापेक्षवादी उन्मुखता ( Instrumental Relativist Orientation ) : इस अवस्था में यद्यपि बच्चे पारस्परिकता तथा सहभागिता के स्पष्ट सबूत प्रदान करते हैं । यह छलयोजित ( Manipulative ) तथा आत्म - परिपूरक पारस्परिकता ( Self - Serving Reciprocity ) होती है न कि सही अर्थ में न्याय , उदारता , सहानुभूति पर आधारित है । यहाँ अदला - बदली ( Bartering ) का भाव मजबूत होता है । 
( b ) रूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( Level of Conventional Morality ) : यह अवस्था 10 से 13 साल की होती है जहाँ बच्चे दूसरों के मानकों ( Standards ) को अपने में आंतरीकृत कर लेता है तथा उन मानकों के अनुसार सही तथा गलत का निर्णय करता है । > इस स्तर पर बच्चे उन सभी क्रियाओं को सही समझता है जिससे दूसरों की मदद होती है तथा दूसरे लोग उसे अनुमोदित करते हैं या जो समाज के नियमों के अनुकूल होता है । इसकी अवस्थाएँ ( Stages ) इस प्रकार हैं -
उत्तम लड़का अच्छी लड़की की उन्मुखता ( Good Boy - Nice Girl Orientation ) : इस अवस्था में बच्चों में स्वीकृति पाने तथा अस्वीकृति ( Disapproval ) से दूर रहने का अभिप्रेरण तीव्र होता है । 
( c ) उत्तररूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( Level of Post Conventional Morality ) : इस अवस्था में बच्चों में नैतिक आचरण पूर्णतः आंतरिक नियंत्रण ( Internal Control ) में होता है । यह नैतिकता का सबसे उच्च स्तर ( Highest Level ) होता है और इसमें नैतिकता ( True Morality ) का ज्ञान बच्चों में होता है । इसके तहत दो अवस्थाएँ ( Stages ) होती हैं , जो इस प्रकार है-
( i ) सामाजिक अनुबंध उन्मुखता ( Social Contract Orientation ) : इस अवस्था में बच्चे या किशोर उन वैयक्तिक आधार ( Individual Rights ) तथा नियमों का आदर करते हैं , जो प्रजातांत्रिक रूप से ( Democratically ) मान्य होता है । वे यहाँ लोगों के कल्याण तथा बहुसंख्यकों के इच्छाओं का तर्कसंगत महत्व देते हैं । यहाँ बच्चे यह विश्वास करते हैं कि समाज का उत्तम कल्याण तब होता है जब उसके सदस्य समाज के नियमों का आदरपूर्वक पालन करते हैं । 
( ii ) सार्वत्रिक नीतिपरक सिद्धांत उन्मुखता ( Universal Ethical Principle Orientation ) : इस अवस्था में बच्चों में अपने नैतिक नियमों ( Ethical Principles ) को प्रोत्साहित करने तथा आत्म - निंदा ( Self - Condemnation ) से बचने का अभिप्रेरण तीव्र होता है । यह उच्चतम सामाजिक स्तर का उच्चतम अवस्था ( Highest Stage ) होता है , जहाँ किशोरों में सार्वत्रिक नैतिक नियम ( Universal Ethical Principles ) की नैतिकता बरकरार रहती है । 
➡️यहाँ किशोर दूसरों के विचारों तथा नैतिक प्रतिबंधों ( Legal Restrictions ) से स्वतंत्र होकर अपने आंतरिक मानकों ( Internal Standards ) के अनुरूप व्यवहार करता है । 
कोहलबर्ग के सिद्धांत की सीमाएँ ( Limitation of Kohlberg Theory ) : 
कोहलबर्ग द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत की सीमाएँ निम्नलिखित हैं ( i ) इस सिद्धांत की सबसे प्रमुख सीमा है कि इसमें वास्तविक व्यवहार की अवस्था की अपेक्षा तार्किकता पर अधिक ध्यान दिया गया है । 
( ii ) यह एक सामान्य अन्वेषण है इसमें प्रत्येक अवस्था के बालक के आस - पास जब प्रेक्षक न हो तो वे अपने सम - आयु वर्ग की नकल करते हैं या उन्हें उत्तर बताते हैं या प्रेक्षक प्रत्येक बालक को ईमानदारी से व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है और बेईमानी से व्यवहार करने वाले कुछ बालकों को हतोत्साहित कर सकता है । यह दर्शाता है कि एक बालक का नैतिक व्यवहार बहुत कमजोर हो सकता है । 
( iii ) कोहलबर्ग का सिद्धांत वास्तव में बहुत सीमित है क्योंकि बालक विभिन्न अवस्थाओं में अपने नैतिक निर्णयों के लिए काफी सीखते हैं लेकिन उनके कार्यों में विभिन्नता है । भारतीय दार्शनिक तथा शिक्षाशास्त्रियों का विश्वास है कि मूल्य व्यक्ति का एक अंग होना चाहिए , उसकी तार्किकता तथा निर्णय निर्माण ऐसा हो कि वह अपने मूल्यों के साथ खुश रह सके ।
संक्षेप में⬇️⬇️⬇️⬇️
कोहलबर्ग के अनुसार नैतिक विकास की तीन मुख्य अवस्थाएँ होती हैं और इन अवस्थाओं का क्रम निश्चित होता है । ये अवस्थाएँ हैं 
प्राकरूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( 4 वर्ष से 10 वर्ष ) 
रूढ़िगत नैतिकता का स्तर ( 10 वर्ष से 13 वर्ष ) * उत्तररूढ़िगत नैतिकता का स्तर 
➡️प्राकरूढ़िगत नैतिकता स्तर में नैतिक तर्कणा ( Moral Reasoning ) दूसरे लोगों के मानकों ( Standards ) से निर्धारित होता है । बच्चे किसी व्यवहार को अच्छा या बुरा उसके भौतिक परिणामों के आधार पर करते हैं । 
➡️रूढ़िगत नैतिकता स्तर में बच्चे उन सभी क्रियाओं को सही समझता है जिससे दूसरों की मदद होती है तथा दूसरे लोग उसे अनुमोदित करते हैं या जो समाज के नियमों के अनुकूल होता है । 
➡️उत्तररूढ़िगत नैतिकता स्तर में बच्चों में नैतिक आचरण पूर्णतः आंतरिक नियंत्रण ( Internal Control ) में होता है । यह नैतिकता का सबसे उच्च स्तर ( Highest Level ) होता है और इसमें नैतिकता का ज्ञान बच्चों में होता है ।
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