परिचय👇👇👇
भरत के नाट्य शास्त्र में वर्णित हैं कि जब सभी देवताओं न भगवान ब्रम्हा से मनोविनोद के लिए एक साधन की रचना करने की प्रार्थना की तो, उन्हों ने चारों वेदों के कुछ पहलूओ को मिला कर नाट्य वेद नाम के पांचवे वेद की रचना की। नाट्य स्वयं में नृत्य, नाटक तथा संगीत का मिश्रण हैं इसमें ऋग्वेद से पथ्य (शब्द),यजुर्वेद से( भगिमाए ) , सामवेद से गीत ( संगीत ) तथा अथर्ववेद से रस ( भाव ) ले कर मिश्रित किए गए हैं ।
नृत्य का पहला औपचारिक उल्लेख भरत मुनि की प्रसिद्ध कृति नाट्यशास्त्र में पाया जाता है जिसमें भारतीय शास्त्रीय नृत्य के विविध पहलुओं पर सर्वाधिक विविध तथा रोचक प्रबंध प्राप्त होते हैं । इस कृति का संकलन 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के बीच किया गया तथा इसमें तकनीकों , मुद्राओं , भावों , आभूषणों , मंच तथा यहाँ तक कि दर्शकों के बा में विस्तृत ब्यौरा प्राप्त होता है । भरत मुनि नृत्य को पूर्ण कला ' की संज्ञा देते हैं , जिसकी परिधि में कला के अन्य सारे रूप- संगीत,शिल्पकला, काव्य तथा नाटक - सम्मिलित हैं।
नृत्य के स्वरूप
नृत्य के रूप नाट्य शास्त्र के अनुसार , भारतीय शास्त्रीय नृत्य के दो आधारभूत स्वरूप हैं :
लास्य : इसमें लालित्य , भाव , रस तथा अभिनय निरूपित होते हैं । कला का यह रूप नृत्य की नारी सुलभ विशेषताओं का प्रतीक है ।
तांडव : यह नृत्य की नर अभिमुखताओं का स्वरूप है तथा इसमें लय तथा गति पर अधिक बल दिया गया हैं।
नृत्य पर नंदिकेश्वर के प्रसिद्ध ग्रन्थ अभिनय दर्पण के अनुसार , किसी अभिनय को तीन आधारभूत त विभाजित किया गया है:
1 . नृत्त : इसका संदर्भ लयबद्ध रूप से किए जाने वाले नृत्य के आधारभूत पद संचालनों से हैं किसी अभिव्यक्ति या मनोदशा का समावेश नहीं किया गया है ।
2:- नाट्य : इसका आशय नाटकीय निरूपणों से है जो नृत्य प्रस्तुति के माध्यम से विस्तृत क निरूपित करता है ।
नृत्य : नृत्य का आशय नर्तन के माध्यम से वर्णित रस तथा भावा से हैं । इसमें मूक अभिन मुद्राओं सहित नर्तन में प्रयुक्त अभिव्यक्ति की विभिन्न विधियों का समावेश रहता हैं।
भारतीय शास्त्रीय नृत्य
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नृत्य की विविध शैलियों का विकास हुआ है , जिनमें से प्रत्येक के अपने विशिष्ट सूक्ष्मातर हैं । यद्यपि , नृत्य की इन सभी विधाओं को नाट्य शास्त्र में वर्णित आधारभूत नियम तथा दिशा निर्देशों के अनुसार संचालित किया जाता है , परन्तु फिर भी मुख्य नियम यही है कि ज्ञान का हस्तांतरण केवल गुरु के माध्यम से हो सकता है । गुरु का ज्ञान शिष्य को प्रदान करता है । यह ' गुरु शिष्य परम्परा' भारत की शास्त्रीय विभिन्न परम्पराओं सम्प्रदाय कला शैली का मुख्य तत्व है ।
संगीत नाटक अकादमी के अनुसार वर्तमान में भारत में आठ शास्त्रीय नृत्य विधाए अस्तित्व में हैं ,जिन्हें निम्नलिखित रूप से वर्णित किया गया है :👇👇👇
1:- भरतनाट्यम
नृत्य विधा का सर्वाधिक प्राचीन रूप , भरतनाट्यम का नाम भरत मुनि तथा ' नाट्यम ' शब्द से मिल कर बना है । तमिल में नाट्यम शब्द का अर्थ नृत्य होता है । यद्यपि , अन्य विद्वान ' भरत ' नाम का श्रेय ' भाव ' . ' राग ' तथा ' ताल ' को देते हैं । इस नृत्य विधा की उत्पत्ति का संबंध तमिलनाडु में मंदिर नर्तकों अथवा ' देवदासियों ' की एकल नृत्य प्रस्तुति ' सादिर ' से है , इसलिए इसे ' दाशीअट्टम ' भी कहा जाता था।
मोहिनीअट्टम प्रमुख कलाकर👇👇👇
यामिनी कृष्णमूर्ति , लक्ष्मी विश्वनाथन , पदमा सुब्रह्मण्यम , मृणालिनी साराभाई , इत्यादि सम्मिलित हैं ।
2:- कुचीपुड़ी नृत्य
मूलत कुसल्वा के नाम से विख्यात गांव - गांव जा कर प्रस्तुति देने वाले अभिनेताओं के समूह के द्वारा प्रस्तुत की जाने । डालो कुचिपुड़ी नृत्य विधा का नाम आंध्र के एक गाँव कुस्सेल्वापुरी या कुचलापुरम् से व्युत्पन्न है । 17 वीं शताब्दी में . योगी ने इस परंपरा को औपचारिक और व्यवस्थित बनाया । उन्होंने ' ' भामा कलपम ' और कई अन्य नाटकों की रचना की।
कुचीपुड़ी के मुख्य कलाकार:- राधा रेड्डी तथा राजा रेड्डी , यामिनी कृष्णमूर्ति , इंद्राणी रहमान , इत्यादि ।
3:- कथकली :-👇
करेल के मंदिरों में सामंतों के संरक्षण में नृत्य - नाट्य के दो रूपों रामानट्टम तथा कृष्णाट्टम का विकास हुआ , जिनमें रामायण तथा महाभारत की कहानियां कही जाती थीं । बाद में ये लोक नाट्य परम्पराएं कथकली के उद्भव का स्रोत बना।
कथकली के प्रसिद्ध प्रतिपादकः गुरु कुंचू कुरुप , गोपी नाथ , कोट्टकल शिवरमन , रीता गांगुली आदि ।
4:- मोहिनीअट्टम:-👇👇
मोहिनीअट्टम या मोहिनी ( ' मोहिनी ' का अर्थ सुंदर स्त्री और ' अट्टम ' का अर्थ नृत्य होता है ) का नृत्य , मूल रूप से नृत्यांगनाओं द्वारा किया जाने वाला एकल नृत्य है जिसे 19 वीं सदी में वडिवेलु द्वारा आगे और विकसित किया गया और वर्तमान में केरल राज्य के त्रावणकोर के शासकों के अधीन इसने महत्व प्राप्त किया । 19 वीं सदी में त्रावणकोर के शासक स्वाति थिरुनल का संरक्षण उल्लेखनीय है अप्रचलित हो जाने के बाद , प्रसिद्ध मलयाली कवि वी . एन . मेनन ने कल्याणी अम्मा के साथ इसे पुनर्जीवित किया ।
प्रसिद्ध प्रतिपादकः सुनंदा नायर , कलामंडलम क्षेमवती , माधुरी अम्मा , जयाप्रभा मेनन आदि ।
5:- मणिपुरी नृत्य
मणिपुरी नृत्य रूप मणिपुर की घाटियों में स्थानीय ' गंधवों ' के साथ शिव और पार्वती के दैवीय नृत्य में अपना पौराणिक उदगम पाता है । यह नृत्य रूप अपना उदगम लाई हैरोबा के त्योहार में देखता है जहां कई नृत्य किए जाते थे ।
प्रसिद्ध मणिपुरी कलाकार:- झावेरी बहनें - नयना , सुवर्णा , रंजना और दर्शना , गुरु बिपिन सिंह , इत्यादि ।
6:- कथक नृत्य
ब्रजभूमि की रासलीला से उत्पन्न , कथक उत्तर प्रदेश की एक परम्परागत नृत्य विधा है ।
प्रसिद्ध कथक कलाकार:- बिरजू महाराज , लच्छू महाराज , सितारा देवी , दमयंती जोशी , इत्यादि ।
7:- सत्रीय नृत्य
असम में 15 वीं शताब्दी में वैष्णव संत शंकरदेव द्वारा आधुनिक रूप में मंत्रिय नृत्य प्रचलित किया गया था ।
सत्रीय नृत्य के कलाकार:- कृष्णाक्षी कश्यप, मीनाक्षी मेधी।
8:- ओडिसी नृत्य
उड़ीसा उदयगिरि खंडगिरी की गुफाएं ओडिसी नृत्य के कुछ प्रारंभिक उदाहरण प्रदान करती हैं । नाट्य शास्त्र में उल्लिखित ' ओद्रा नृत्य ' से इस नृत्य रूप को नाम मिला है । मुख्य रूप से ' महारी ' द्वारा यह नृत्य किया जाता था और इसे जैन राजा खारवेल का संरक्षण प्राप्त था ।
प्रसिद्ध ओडिसी कलाकार:- गुरु पंकज चरण दास , गुरु केलू चरण महापात्र सोनल मानसिंह , शेरॉन लोवेन ( यूएसए ) , मिर्ला बारवी ( अर्जेंटीना ) ।
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