भाषा विकास के सिद्धान्त 

विभिन्न विचारको भाषा विकास के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है जिनका वर्णन निम्न रूप से किया गया है। 

बैण्डूरा का सिद्धान्त 

बैण्डूरा ने अपने सामाजिक सीखने के सिद्धान्त में अनुकरण पर बलपूर्वक कहा कि बालक अपने परिवार तथा आस - पड़ोस में प्रयोग की जाने वाली भाषा को अनुकरण या नकल के माध्यम से सीखता है । बालकों को जिस प्रकार का वाक्य एवं शब्द सुनने को मिलता है , उसे वह आसानी से सीख लेता है । एल्बर्ट बैण्डूरा ने इस बात पर भी बल दिया कि प्रतिरूपण ( मॉडलिंग ) भी बच्चों के सीखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । 👇👇👇

परिपक्वता का सिद्धान्त 

परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं स्वरों पर नियन्त्रण होना । बोलने में जिह्वा , गला , तालु , होंठ , दाँत तथा स्वर यन्त्र आदि जिम्मेदार होते हैं इनमें किसी भी प्रकार की कमजोरी या कमी वाणी को प्रभावित करती है । इन सभी अंगों में जब परिपक्वता होती है , तो भाषा पर नियन्त्रण होता है और अभिव्यक्ति अच्छी होती है । 

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अनुबन्धन का सिद्धान्त 

भाषा विकास में अनुबन्धन या साहचर्य का बहुत योगदान है । शैशवावस्था में जब बच्चे शब्द सीखते हैं , तो सीखना अमूर्त नहीं होता है , बल्कि किसी मूर्त वस्तु से जोड़कर उन्हें शब्दों की जानकारी दी जाती है । इसी तरह बच्चे विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति से साहचर्य स्थापित करते हैं और अभ्यास हो जाने पर सम्बद्ध वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति पर सम्बन्धित शब्द से सम्बोधित करते हैं । 

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अनुकरण का सिद्धान्त 

चैंपिनीज , शर्ली , कर्टी तथा वैलेण्टाइन आदि मनोवैज्ञानिकों ने अनुकरण के द्वारा भाषा सीखने पर अध्ययन किया है । इनका मत है कि बालक अपने परिवारजनों तथा साथियों की भाषा का अनुकरण करके सीखते हैं । जैसी भाषा जिस समाज या परिवार में बोली जाती है बच्चे उसी भाषा को सीखते हैं । यदि बालक के समाज या परिवार में प्रयुक्त भाषा में कोई दोष हो , तो उस बालक की भाषा में भी दोष परिलक्षित होता है । 



चोमस्की का भाषा अर्जित करने का सिद्धान्त 

चोमस्की का कहना है कि बच्चे शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण करते हुए वाक्यों का निर्माण करना सीख जाते हैं । इन शब्दों से नए - नए वाक्यों एवं शब्दों का निर्माण होता है । इन वाक्यों का निर्माण बच्चे जिन नियमों के अन्तर्गत करते हैं , उन्हें चोमस्की ने जेनेरेटिव ग्रामर की संज्ञा प्रदान की है ।