सोचना एक उच्च प्रकार की मानसिक क्रिया है , जो ज्ञान को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । बालकों में सोचने की प्रक्रिया का विकास प्रत्यक्षीकरण , कल्पना, प्रत्यय, तर्क , अनुभव तथा अनुकरण इत्यादि के आधार पर होता है । इस प्रक्रिया में अभिभावकों एवं अध्यापकों को बालकों के समक्ष समस्या उत्पन्न कर उसे सोचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए , ताकि उनके अन्दर जिज्ञासा की प्रवृत्ति बनी रहे । सीखना एक जटिल , बहुआयामी एवं गतिशील प्रक्रिया है, जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है ।


बच्चे कैसे सोचते हैं ? 
✴️सोचना एक उच्च प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है , जो ज्ञान को संगठित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इस मानसिक प्रक्रिया में बहुधा स्मृति , प्रत्यक्षीकरण , अनुमान , कल्पना आदि मानसिक प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित होती हैं । . 
✴️एक बालक के समक्ष हमेशा अनेक वस्तुएँ , समस्याएँ , दृश्य - परिदृश्य आदि दृष्टिगोचर होते रहते हैं तथा बालक उन समस्याओं , वस्तुओं , दृश्य - परिदृश्यों आदि के विषय में चिन्तन करता रहता है । यह चिन्तन अनुभवजन्य होता है । 
✴️बालक अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति अनुसार वस्तुओं को देखकर या छूकर उनके बारे में अनुभव प्राप्त करता है । धीरे - धीरे बालक में प्रत्यय का निर्माण होने लगता है तथा पूर्व किशोरावस्था में बालक अमूर्त वस्तुओं के विषय में सोचने लगता है । 
✴️बालकों में सोचने की प्रक्रिया का विकास एक निश्चित क्रम में होता है ।

✴️बालकों में सोचने की प्रक्रिया ✴️
बालकों में सोचने की प्रक्रिया के निम्नलिखित आधार हैं-
A. प्रत्यक्षीकरण के आधार पर सोचना बच्चों में इस प्रकार की सोच का विकास वस्तुओं और परिस्थितियों के प्रत्यक्षीकरण ( Manifestation ) से सम्बन्धित होता है । बालक अपने चारों ओर के भौतिक और मनोवैज्ञानिक वातावरण में जिन वस्तुओं और परिस्थितियों को देखता है या प्रत्यक्षीकरण करता है । उसके आधार पर वह अपने ज्ञान का संचय कर अपनी सोच का विकास करता है । 
B. कल्पना के आधार पर सोचना जब उद्दीपन , वस्तु या पदार्थ , उपस्थित नहीं होता है , तब उसकी कल्पना की जाती है । इनके अभाव में कोई बालक इनकी मानसिक प्रतिमा ( Image ) बनाकर अपने ज्ञान का संचय करता है । कल्पना , बालकों में सोचने का एक सुदृढ़ आधार है , जिसके आधार पर बालक अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर अपनी भविष्यगत सोच का निर्माण करता है ।
C. प्रत्ययों के आधार पर सोचना यह अपेक्षाकृत अधिक उच्च प्रकार की सोच है । इसकी बालकों में अभिव्यक्ति तभी होती है , जब बालकों में प्रत्ययों ( Concepta ) का निर्माण प्रारम्भ होता है । एक बालक में जितने ही अधिक प्रत्यय निर्मित होते हैं उसमें उतनी ही अधिक प्रत्ययात्मक सोच पाई जाती है । इस प्रकार की सोच को विचारात्मक सोच भी कहते हैं । स्थान , आकार , भार , समय , दूरी और संख्या आदि सम्बन्धी प्रत्यय बालकों में प्रारम्भिक आयु स्तर पर ही बन जाते हैं । 
D. तर्क के आधार पर सोचना इस प्रकार की सोच का विकास किसी बालक में भाषा सम्प्रेषण के आधार पर होता है । यह सबसे उच्च प्रकार की सोच है । 
E. सर्कणा के आधार पर सोचना किसी बात / समस्या को लेकर भिन्न भिन्न प्रकार का तर्क लगाना , तर्कणा ( Reasoning ) कहलाता है । तर्कणा के प्रकार तर्कणा के प्रमुख दो प्रकार हैं । 
( i ) आगमनात्मक तर्कणा तर्क करने की एक ऐसी विधि , जो अभिग्रह या पूर्वधारणा से आरम्भ होती है । यह विशिष्ट से सामान्य की ओर तर्कणा है । 
( ii ) निगमनात्मक तर्कणा तर्क करने की एक ऐसी विधि , जो विशिष्ट तथ्यों एवं प्रेक्षण पर आधारित हो । यह सामान्य से विशिष्ट की ओर चलती हैं । 
F. अनुभव के आधार पर सोचना बालक अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर अपनी नवीन सोच का विकास करते हैं । इस प्रकार की सोच का विकास बच्चों में स्थायी ज्ञान प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना जाता है । रुचि और जिज्ञासा के आधार पर सोचना कुछ बालक अपनी रुचियों और जिज्ञासाओं के आधार पर अपनी सोच का सृजन करते हैं । शिक्षक तथा अभिभावकों को चाहिए कि वह बालको में नई नई रुचियों और जिज्ञासा को पैदा करें , जिससे कि बच्चों में सोचने की प्रक्रिया की गति तीव्र हो सके । 
G.अनुकरण के आधार पर सोचना बालकों की सोच के विकास में अनुकरण का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । वह जब अपने आस पास लोगों को कोई कार्य करते देखते हैं , तब वह उसी कार्य को करने की कोशिश करते अपनी सोच का विकास करते हैं ।

बच्चों में सोचने की योग्यता को बढ़ाने हेतु आवश्यक उपाय
क्रो एव क्रो के अनुसार , " बालकों में सोचने की योग्यता सफल जीवन के लिए आवश्यक है । 
अतः अभिभावकों और शिक्षकों को चाहिए कि बालकों में इस योग्यता के विकास पर ध्यान दिया जाए ।
बालकों में सोचने की योग्यता के विकास में निम्नलिखित उपाय सहायक हैं जो निम्न प्रकार है 
✴️बालकों को सोचने के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करना चाहिए । बालकों के भाषा ज्ञान को उच्च करने के उपाय करने चाहिए , जिससे वह समय - समय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकें । 
✴️बालकों की रुचियों के विकास पर ध्यान देना चाहिए । रुचियों के अभाव में सोचने की योग्यता कठिनाई से विकसित हो पाती है । 
✴️बालकों को उनकी आयु के अनुसार समय - समय पर ऐसे कार्य सौंपे जाने चाहिए , जिससे उनमें उत्तरदायित्व की भावना का विकास हो सके और उत्तरदायित्व के निर्वहन हेतु सोचने के लिए प्रेरित हो सकें । 
✴️बालकों को उनकी आयु के अनुसार समस्या समाधान करना भी माता - पिता और शिक्षकों को सिखाना चाहिए , क्योंकि समस्या - समाधान के द्वारा भी सोचने की योग्यता विकसित होती है ।
✴️ शिक्षकों और माता - पिता को बालकों को नवीन बातों की समय - समय पर अर्थात् उनकी आयु के अनुसार जानकारी देनी चाहिए , जिससे उनमें सोचने का विकास सुचारु रूप से चल सके । 
✴️तर्क और वाद - विवाद की भी सोचने की योग्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है , इनको भी सिखाने के अवसर देने चाहिए । 
✴️बालकों को ऐसा उद्दीपकपूर्ण वातावरण समय - समय पर उपलब्ध कराना चाहिए , जिससे वे सोचने के महत्त्व को समझें और अपनी योग्यता को बढ़ाने के लिए वातावरण का लाभ उठा सकें ।

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