विकास :-  विकास एक प्रक्रिया है जिसमें वृद्धि, परिपक्वता और अधिगम को सम्मिलित किया जाता है। सामान्य मनोवैज्ञानिक अर्थ में इसका संदर्भ मानवों अथवा पशुओं में जन्म और मृत्यु के बीच होने वाले विशेष परिवर्तनों से है। इन परिवर्तनों में व्यक्ति का विकास होता है और उसमें आश्रित होने के स्थान पर स्वशासन की भावना विकसित होती है। ये परिवर्तन क्रमशः सामने आते हैं और अपेक्षतः स्थायी प्रकृति के होते हैं। विकास में मात्रात्मक परिवर्तनों के साथ ही गुणात्मक परिवर्तनों को शामिल किया जाता है। इसमें केवल सरंचनात्मक परिवर्तन ही नहीं बल्कि कार्यात्मक परिवर्तन भी शामिल होते हैं। विकास का केवल मूल्यांकन किया जा सकता है।

ई हर्लौक के अनुसार :-“विकास केवल स्तर वृद्धि तक सीमित नहीं है बल्कि यह परिपक्वता प्राप्ति की ओर परिवर्तनों की एक प्रगतिशील श्रृंखला है”। विकास के कारण, मनुष्य में नईं योग्यताएं विकसित होती हैं।

हीन्ज़ वर्नर के अनुसार :-“विकास में एकीकरण और अंतर की दो प्रक्रियाएं शामिल होती हैं”।

जे. ई. एंडरसन के अनुसार :-“विकास का संबंध वृद्धि के साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन से है जो वातावरणीय स्थितियों के कारण उत्पन्न होता है।

जर्सिल्ड, टेलफोर्ड और सावरे के अनुसार :-“विकास का संदर्भ निषेचित अंडाशय से एक परिपक्व कार्यशील जीव में उदित होने में शामिल जटिल प्रक्रियाओं के समूह से है।

वृद्धि :- वृद्धि को शरीर का आकार बढ़ने के रूप में परिभाषित किया जाता है। शरीर के भार, लंबाई और आंतरिक अंगों का बड़ा होना वृद्धि है। यह केवल शारीरिक रूप से ही होती है। इसका संदर्भ मात्रात्मक परिवर्तन से है। इसे मापा जा सकता है।

विकास के मुख्य बिंदू :-

विकास की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है जो एक निश्चित अनुक्रम का अनुसरण करती है।

शैशवास्थाप्रारंभिक बाल्यावथा →पश्च बाल्यावस्था →किशोरावस्था →परिपक्वता

विकास में मात्रात्मक लक्षणों के साथ ही गुणात्मक लक्षण भी शामिल होते हैं।एक कमजोर और एक कुशाग्र बच्चे को देखकर विकास की दर का अनुमान लगाना संभव है, लेकिन जरूरी नहीं है कि यह अनुमान सटीक हो।वृद्धि को विकास के एक भाग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जबकि विकास व्यक्ति की वृद्धि में संपूर्ण परिवर्तन से जुड़ा होता है।विकास बिना वृद्धि के हो सकता है।लोग विभिन्न दरों से विकसित होते हैं। व्यक्तिगत अंतर का कारण अनुवांशिक, पालन और वातावरणीय प्रभाव हो सकते हैं।

मानव विकास के चरण :-

जन्म पूर्व अवधि :-        जन्म तक

शैशवास्था :-               जन्म से दो सप्ताह

बाल्यावस्था :-            दो सप्ताह से दो वर्ष

बचपन :-                  दो वर्ष से दस-बारह वर्ष

प्रारंभिक बचपन :-       दो वर्ष से छह वर्ष

बाद का बचपन :-        छह वर्ष से बारह वर्ष

पूर्व किशोरावस्था :-      ग्यारह वर्ष से तेरह वर्ष (लड़कियां)

                                    बारह से चौदह वर्ष (लड़के)

किशोरावस्था :-          तेरह वर्ष से सत्रह वर्ष

बाद की किशोरावस्था :- सत्रह वर्ष से उन्नीस-बीस वर्ष

व्यस्क :-                बीस वर्ष से चालिस वर्ष

मध्यावस्था (अधेड़) :- चालिस से साठ वर्ष

बुढ़ापा :-                 साठ के बाद

बच्चे के संपूर्ण विकास और शिक्षा के लिए निम्नलिखित तीन मुख्य चरण हैं :-

प्रारंभिक बाल्यावस्था बाद की बाल्यावस्थाव्यस्कता

प्रारंभिक बाल्यावस्था :- इस अवस्था में बच्चे स्वतंत्र रहकर कार्य करना पसंद करते हैं। वे हर किसी का अपने काम में दखल पसंद नहीं करते हैं। वे अपना अधिकांश समय खिलौनों के साथ खेलने में बिताते हैं। बच्चे इस अवस्था में आदेश नहीं मानना, गुस्सा और विरोधी व्यवहार प्रकट करते हैं। यह भाषा विकास की एक संवेदनशील अवधि होती है। इस अवस्था में बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार होते हैं, परिवार के सदस्यों की पहचान करते हैं और अपने आस-पास में घुलते मिलते हैं। बच्चे इस अवस्था में बहुत जिज्ञासु होते हैं, उन्हें चीजों के साथ प्रयोग करना अच्छा लगता है।

बाद का बचपन :- इस अवस्था को कईं अवस्थाओं जैसे प्राथमिक अवस्था, परेशान अवस्था और प्रसुप्ति अवस्था के नाम से जाना जाता है। इस चरण के दौरान बच्चे अपने सामाजिक मूल्यों को सीखते हैं। विकास प्रक्रिया में यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चे खुद को शैक्षिक गतिविधियों में शामिल करते हैं। वे दोस्त बनाना शुरू करते हैं, इस अवस्था में सबसे अच्छे दोस्त महत्वपूर्ण हैं। वे इस अवस्था में जो भी कुछ सीखते और अनुभव करते हैं, उसका उनके बाद के जीवन, शैक्षिक और अन्य रूप से बहुत प्रभाव होता है। वे इस अवस्था में अपनी रचनात्मक क्षमता विकसित करते हैं।

किशोरावस्था :- इस अवस्था को “तनाव और आक्रोश” अवस्था के नाम से जाना जाता है। बच्चे कईं सामाजिक, जैविक औऱ निजी परिवर्तन महसूस करते हैं। इन परिवर्तनों के कारण किशोरावस्था को संभालना बहुत मुश्किल होता है और इसीलिए यह व्यक्ति के जीवन में विकास की सबसे जटिल अवस्था होती है। इस अवस्था में यौन परिपक्वता प्राप्त करने के लिए हार्मोन प्रभाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बच्चे के विकास में सामयिक क्षेत्र :-

मानव विकास को निम्नलिखित क्षेत्रों में बांटा जा सकता है

शारीरिक क्षेत्रसंज्ञानात्मक क्षेत्रसामाजिक और भावनात्मक क्षेत्रनैतिक क्षेत्रभाषाई क्षेत्रनिजी क्षेत्र

शारीरिक क्षेत्र :- यह क्षेत्र किसी व्यक्ति के शारीरिक पहलुओं में परिवर्तन से संबंधित है। यह शरीर में होने वाले मात्रात्मक परिवर्तनों से जुड़ा है। इस विकास को परिपक्वता भी कहा जाता है।

शारीरिक क्षेत्र में शामिल है:-

संपूर्ण गतिशील विकास –        जैसे पैर और हाथ।विशेष गतिशील विकास –        जैसे हाथ और अंगुलियां।संज्ञानात्मक गतिशील विकास – दृष्टि, स्पर्श और गंध।सिफालो-सॉडल विकास –        इसमें विकास सिर से पैर के अंगूठे तक होता है। इस विकास के अनुसार, बच्चा पहले मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त करता है और फिर हाथों और फिर पैरों पर नियंत्रण प्राप्त करता है।

प्रोक्सिमो-डिस्टल विकास –     इसमें विकास मध्य से शुरू होता है और फिर किनारों तक जाता है। इसके अनुसार, पहले मेरूरज्जू विकसित होती है और फिर शरीर के अन्य अंग विकसित होते हैं।

संज्ञानात्मक क्षेत्र :- यह क्षेत्र व्यक्ति के संज्ञानात्मक लक्षणों जैसे बुद्धिमत्ता, सोचने, तर्क देने और विश्लेषण करने की क्षमता से संबंधित है और इसके विकास को संज्ञानात्मक विकास कहते हैं। जीन पियागेट के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की वज़ह से उनका इस क्षेत्र में काफी गहरा प्रभाव था।

सामाजिक और भावनात्मक क्षेत्र :- हरलौक के अनुसार, “सामाजिक विकास का अर्थ सामाजिक अपेक्षाओं के अनुसार स्वयं को ढालने की क्षमता का विकसित होना है। यह क्षेत्र बच्चों के बीच सामाजिक विकास का सूचक है। बच्चे अपने समकक्षों और दूसरों के साथ मेल-जोल करते समय साझा करना, सहयोग करना, धैर्य रखना आदि सामाजिक कुशलताएं विकसित करते हैं।

भावनात्मक क्षेत्र का संबंध बच्चे की अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने की योग्यता से है। भावनात्मक विकास को सामाजिक विकास के रूप में समझा जा सकता है क्योंकि यह सामाजिक जीवन के संदर्भ में विकसित होता है।

नैतिक विकास :- इस क्षेत्र में, बच्चों में नैतिक विचार, चरित्र, सही दृष्टिकोण और समाज में अन्य लोगों के प्रति व्यवहार का विकास होता है। बच्चे बौद्धिक परिपक्वता के एक निश्चित स्तर तक पहुंच जाने तक नैतिक फैंसले लेने में सक्षम नहीं होते हैं।

पियाजे के अनुसार, बच्चे अपने स्वयं के नैतिक संसार की रचना करते हैं तथा सही और गलत के बारे में अपने मूल्य खुद बनाते हैं। उनका मानना था कि बच्चे संसार के अपने स्वयं के अवलोकन के आधार पर नैतिक निर्णय करते हैं।

कोह्लबर्ग ने नैतिक विकास को तीन चरणों में विभाजित किया है।

पूर्व परंपरागत परंपरागतपश्च परंपरागत

भाषा क्षेत्र :- भाषा संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। संवाद के इस क्षेत्र में अपने विचारों और भावनाओं को प्रकट करने के लिए शब्दों और इशारों का प्रयोग होता है।

निजी क्षेत्र :- सभी व्यक्तियों का विकास का अपना अलग तरीका होता है। इस क्षेत्र में, हम देखते हैं कि एक व्यक्ति का व्यक्तित्व किस प्रकार परिवर्तित होता है।

वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक :-

वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं।

आनुवांशिकपोषणपर्यावरणयौनप्रारंभिक उत्तेजनाशिशु पालन के तरीके

अधिगम :- क्रो एवं क्रो के अनुसार, “अधिगम में आदतों, ज्ञान और दृष्टिकोण का अधिग्रहण शामिल होता है।”

ई.एल. थॉर्नडाइक के अनुसार, “अधिगम एक धीमी प्रक्रिया है जबकि व्यक्ति सीखने के कईं प्रयास करता है।“

अधिगम और विकास के मध्य संबंध :-

अधिगम और विकास के बीच संबंध को समझना महत्वपूर्ण है।

कुछ विद्वानों का मत है कि अधिगम से विकास शुरू होता है जबकि कुछ अन्य का मत है कि विकास से अधिगम शुरू होता है। (पियाजे)अधिगम अपने दोस्तों और शिक्षकों के साथ सामाजिक मेल-जोल द्वारा विकासात्मक प्रक्रियाओं को जगाता है जो कि बच्चे के अलगाव में रहने कि स्थिति में जाग्रत नहीं होता।विकास और अधिगम के लिए एक सुरक्षित वातावरण आवश्यक है। बच्चे को स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए मुक्त अनुभव करने की आवश्‍यकता होती है। बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की जिम्मेदारी स्कूल, माता-पिता और समुदाय की है। इससे बच्चे के अंदर अपने जीवन में तालमेल बैठाने और संघर्ष करने की मानसिक और व्यवहारात्मक योग्यता का विकास होने में मदद मिलती है।बाद के विकास और अधिगम के लिए प्रारंभिक विकास बहुत जरूरी है।बच्चे को प्रारंभिक अवस्था में हुए अनुभवों का उसके बाद के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। अनुभव के अच्छा अथवा बुरा होने से निरपेक्ष, बचपन की घटनाएं अधिगम और विकास दोनों को प्रभावित करती हैं।

धन्यवाद