विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक --
भारत में विभिन्न अभिलेखों में विशिष्ट आवश्यकता वाले बालों को अलग - अलग तरह से परिभाषित किया गया है । जनपदीय प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम ( Disctrict Primary Education Programme - DPEP ) के अन्तर्गत उन बच्चों को विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाला माना गया है जो दृष्टि , श्रवण , गामक और बौद्धिक आधार पर अक्षम होते हैं । 2000 में सार्क देशों के लिए , ‘ सम्मिलित शिक्षा की आवश्यकताओं का मूल्यांकन ' विषय पर एन . सी . ई . आर . टी . - यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यशाला ( NCERT - UNESCO Regional Workshop ) का आयोजन हुआ था । इस कार्यशाला की रिपोर्ट के अनुसार " एक बड़े अनुपात में विद्यालयी आयु के बच्चे , जो बालश्रम समूह के होते हैं , सड़कों पर रहने वाले . प्राकृतिक विभीषिका और सामाजिक दंगों के शिकार होते हैं और वे जो सामाजिक - आर्थिक रूप अति वंचित होते है । "
 ' ....... the large portion of children in the school age : belonging of child labour are , street children , victims of natural catastrophes and social conflicts , and those in extreme social and economic deprivation . ' -Report , 2000 , NCERT - UNESCO Workshop 
उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार शारीरिक अक्षमता से अलग भी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाले बच्चे होते हैं । 
सर्व शिक्षा अभियान के तहत ‘ स्पेशल फोकस ग्रुप ' 
( Special Focus Groups ) में विशिष्ट बालकों की ओर ध्यान दिया गया है , जिसमें लड़कियों , अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और शहरी गरीब बच्चों को भी सम्मिलित किया गया है । एन . सी . ई . आर . टी . ने भी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाले बच्चों में विकलांगों , सामाजिक दृष्टि से वंचितों , जैसे — अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति तथा अल्पसंख्यकों को सम्मिलित किया है ।
 शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय वर्गीकरण ' ( International Standard Classification of Education , ISCED - 97 , UNESCO , 1997 ) विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाले बच्चों के लिए ' स्पेशल नीड एजूकेशन ' कार्यक्रम बनाया , जो वास्तव में विशिष्ट शिक्षा ' को बदलकर लागू किया गया ।  प्रारम्भ में विशिष्ट शिक्षा उन्हीं बालकों के लिए समझी जाती थी जो विकलांग होते थे , परन्तु विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाली शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है । परन्तु विश्व के सभी देशों में इस व्यापक स्वरूप को अवधारित नहीं किया गया है । मुख्य रूप से विशिष्ट अक्षमता वाले बालों को ही विशिष्ट शक्षिक आवश्यकता वाले बालक समझा जाता है । मानव संसाधन विकास मन्त्रालय , भारत सम्मिलित हैं सरकार के वेबसाइट ( 2003 ) पर निम्न वर्ग विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाले वर्ग के अन्तर्गत 
( i ) दृष्टि विकलांग ( Visual disabilities ) 
( ii ) वाणी एवं श्रवण विकलांग ( Speech and hearing disabilities ) 
( iii ) गति सम्बन्धी विकलांगता ( Locomotor disabilitics ) 
( iv ) स्नायु - विकास सम्बन्धी गड़बड़ी ( Neuromus - culoskchtal and neuro - developmental disorder ) - जिसमें मस्तिष्क से सम्बन्धित ( Cerebral ) , ऑटिज्म ( Autism ) , मंदबुद्धि ( Mental retardation ) , बहु - अक्षमता ( Multiple disability ) , और अधिगम अक्षमता ( Learning disabilities ) सम्मिलित हैं । क्रुकशेक का मानना है कि विशिष्ट बालक , सामान्य बालकों से बहुत अधिक भिन्न होता है यह भिन्नता शारीरिक , बौद्धिक संवेगात्मक अथवा सामाजिक इत्यादि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है । यह भिन्नता इतनी अधिक होती है कि विद्यालय की दिन - प्रतिदिन की गतिविधियों से इन्हें कोई लाभ नहीं होता है । इन्हें विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है । 
विशिष्ट बालकों में कुछ ऐसे लक्षण होते हैं , जो उन्हें विशिष्ट बनाते हैं । ये लक्षण सामान्य बालकों की अपेक्षा विशिष्ट बालकों में दो रूपों में भिन्न हो सकते हैं । 
1. मात्रात्मक रूप में ( Quantitatively ) - गुणों / लक्षणों की संख्या कम या अधिक हो सकती है अथवा किसी गुण विशेष की मात्रा इतनी अधिक होती है कि दूसरों का ध्यान आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर लेती है । उदाहरण के लिए , सामान्य से बहुत अधिक लम्बे अथवा सामान्य से बहुत अधिक छोटे व्यक्ति की ओर किसी का भी ध्यान आसानी से चला जाता है । 
2. गुणात्मक रूप में ( Qualitatively ) – कक्षा में कुछ बालक अति उच्च बुद्धि लब्धि के होते हैं जबकि कुछ अन्य बालक सामान्य बुद्धि लब्धि के तथा कुछ बालक मन्द बुद्धि के होते हैं । अति उच्च बुद्धि लब्धि या मन्द बुद्धि के बालक आसानी से अध्यापक तथा सहपाठियों के ध्यान का केन्द्र बन जाते हैं । 
एक सामान्य बालक सामान्य शिक्षा के द्वारा ही अपने गुणों का विकास करता है । परन्तु एक विशिष्ट बालक को अपने अन्दर छिपे गुणों एवं संभावनाओं का पता लगाने के लिए विशेष कक्षा एवं विशेष सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है । उदाहरण के लिए एक बालक नेत्रहीन हो सकता है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि उसके अन्दर कोई अन्य गुण नहीं है । वह एक अच्छा गायक , संगीतकार , लेखक , अध्यापक हो सकता है परन्तु इसके लिए उसे विशेष प्रयास एव विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। 
विशिष्ट बालक की परिभाषाएँ ( DEFINITIONS OF EXCEPTIONAL CHILD ) 
क्रुकशैंक के अनुसार - एक विशिष्ट बालक वह है , जो शारीरिक , बौद्धिक , संवेगात्मक अथवा सामाजिक रूप से , सामान्य बुद्धि एवं विकास से इतना स्पष्ट रूप से विचलित होता है कि नियमित कक्षा कार्यक्रमों से लाभान्वित हो सकता तथा जिसे विद्यालय में विशिष्ट देखरेख की आवश्यकता होती ।"  
क्रो एवं क्रो के अनुसार - ' विशिष्ट शब्द किसी विशेष लक्षण अथवा किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो विशेष लक्षणों से युक्त हो . जिसके कारण व्यक्ति अपने साथियों का विशेष ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है । " श्वार्टज के अनुसार- जब हम किसी को ' विशिष्ट ' कहकर वर्णित करते हैं , तो हम व्यक्ति को औसत या सामान्य लोगों , जिन्हें हम एक या अधिक लक्षणों के सम्बन्ध में जानते हैं , से अलग रखते हैं । "  
हैलाहन एवं कॉफमैन के अनुसार विशिष्ट बालक वे हैं , जिन्हें यदि अपनी सम्पूर्ण मानवीय संभावनाओं का अनुभव करना है , तो विशेष शिक्षा तथा सम्बन्धित सेवाओं की आवश्यकता होती है । "  
किर्क के अनुसार - विशिष्ट बालक वह है जो सामान्य या औसत बालक से मानसिक , शारीरिक व सामाजिक विशेषताओं में इतना अधिक भिन्न होता है कि उसे अपनी अधिकतम क्षमता के विकास होती है । हेतु विद्यालयी क्रियाकलापों में संशोधन या विशिष्ट शैक्षिक सेवाओं अथवा पूरक अनुदेशन की आवश्यकता -
Kirck " An exceptional child is who deviates from the normal or average child in mental , physical and social characteristics to such an extent . "
विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों का वर्गीकरण 
( CLASSIFICATION OF CHILDREN WITH SPECIAL NEEDS ) 
टेलफोर्ड एवं सॉर ने विचलन के क्षेत्रों के आधार पर विशिष्ट बालकों को 6 वर्गों में वर्गीकृत किया है-
1. बौद्धिक विचलन ( Intellectual Deviance ) 
2. संवेदी विचलन ( Sensory Deviance ) 
3 . गामक विचलन ( Motor Deviance ) 
4. व्यक्तित्व विचलन ( Personality Deviance ) 
5. सामाजिक विचलन ( Social Deviance ) 
6. बुजुर्गों की समस्यायें ( Problems of Aged ) । 
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों को विशिष्ट बालकों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है । विशिष्ट बालकों का सरलतापूर्वक अध्ययन करने के लिए निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटना उचित प्रतीत होता है 
1. बौद्धिक रूप से विशिष्ट 
2. शारीरिक रूप से विशिष्ट 
3. सामाजिक रूप से विशिष्ट 
4. संवेगात्मक रूप से विशिष्ट । 
इन सभी वर्गों के विशिष्ट बालकों को विशेष लक्षणों के आधार पर पुनः उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है ।
बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालक 
( INTELLECTUALLY EXCEPTIONAL CHILDREN) 
कुछ बालक बौद्धिक क्षमताओं में सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं । उनमें यह मिन्नता ऋणात्मक अथवा धनात्मक दोनों हो सकती है अर्थात उनमें सामान्य से कम बौद्धिक क्षमताएँ हो सकती हैं अथवा उनमें सामान्य से अधिक बौद्धिक क्षमताएँ हो सकती हैं । बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालक निम्न पकार के हो सकते हैं । 
1. प्रतिभा सम्पन्न बालक ( Gifted Children ) 
2. मानसमंद बालक ( Mentally retarted children ) 
3. पिछड़े बालक ( Backward Children ) 
4. निम्न उपलब्धि वाले बालक ( Low achievers ) 
5. सर्जनात्मक बालक ( Creative Children ) |
बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालकों की समस्याएँ 
1. बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालक कक्षा के अन्य विद्यार्थियों अथवा अपनी आयु के अन्य बालकों के साथ भली प्रकार समायोजित नहीं होते क्योंकि या तो वे उन यालकों को अपने से निम्न स्तर का समझते हैं अथवा इनमें दूसरों की अपेक्षाओं को समझने लायक योग्यता नहीं होती । 
2. विशेषकर प्रतिभा सम्पन्न बालक , शारीरिक गतिविधियों में कम प्रतिभागिता करते हैं । 
3. चाहे प्रतिभा सम्पन्न हों अथवा मानसमंद , ये बालक सामान्य कक्षा में होने वाली गतिविधियों से लाभान्वित नहीं होते । इन्हें विशेष पाठ्यक्रम , विशेष शिक्षण - विधि एवं विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है । 
4. प्रतिभासम्पन्न बालक अक्सर सामाजिक मानदण्डों की उपेक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें इनमें कोई सार्थकता नहीं दिखाई देती , उनका चिन्तन बहुत उच्च स्तर का होता है । जबकि मानसमंद बच्चे इन मानदण्डों की उपेक्षा इसलिए करते हैं क्योंकि वे इन्हें समझ पाने में असमर्थ होते है । 
5 . प्रायः बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालक अन्तर्मुखी स्वभाव के होते हैं , ये किसी से मिलनाजुलना पसन्द नहीं करते ।
बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालकों की प्रमुख आवश्यकताएँ
1 . प्रतिभासम्पन्न बालकों और मानसमन्द बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालय होने से उन्हें अपनी क्षमताओं के विकास का समुचित अवसर मिलेगा । 
2. विशिष्ट विद्यालयों की व्यवस्था न हो पाने की स्थिति में विशिष्ट कक्षाएँ आयोजित की जानी चाहिए जिनमें इनके लिए विशिष्ट अध्यापक नियुक्त किए जाएँ । 
3. सामूहिक क्रियाओं में इन बालकों को भाग लेने का अवसर देकर इनकी समायोजन की समस्या को हल किया जा सकता है । 
4. इन क्रियाओं के आयोजन से मानसमंद बालकों के अन्य गुणों का पता लगाया जा सकता है , जिन्हें विकसित कर मानसमंदता की आंशिक पूर्ति की जा सके । इन्हीं क्रियाओं के द्वारा प्रतिभासम्पन्न बालकों के अन्दर छुपे गुणों का पता लगाया जा सकता है । 
5. बौद्धिक रूप से विशिष्ट बालकों को यह निर्देशन देना आवश्यक है कि जीवन के किस क्षेत्र में वे सफल हो सकते हैं ।

धन्यवाद